Apr 10, 2022, 13:25 IST

Ram Navami 2022: राम नवमी का महापर्व आज, जानें भगवान राम की पूजा विधि

Ram Navami 2022: राम नवमी का महापर्व आज, जानें भगवान राम की पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

Ram Navami 2022: देशभर में आज रामनवमी का महापर्व मनाया जा रहा है। चैत्र नवरात्रि नवमी को ही रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर देशभर के तमाम मंदिरों में सुबह से भक्तों की भीड़ लगी है। लोग अपने-अपने तरीके से मां दूर्गा के साथ-साथ भगवान राम की अराधना में जुटे हैं।  

भगवान राम श्री हरि विष्णु का सातवां अवतार थे। विष्णु जी ने अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए राजा दशरथ के यहां पुत्र रूप में जन्म लिया था। जिस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था, उस दिन चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी। यह दिन प्रभु श्री राम के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। 

पूजा का शुभ मुहूर्त

चैत्र शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि का प्रारंभ 10 अप्रैल, रविवार को देर रात 1 बजकर 22 मिनट पर हो रहा है, जो कि 11 अप्रैल, सोमवार को सुबह 3 बजकर 16 मिनट पर समाप्त होगी। राम जन्मोत्सव का शुभ मुहूर्त 10 अप्रैल को सुबह 11 बजकर 6 मिनट से दोपहर 1 बजकर 39 मिनट तक रहेगा। दिन में प्रभु श्रीराम की पूजा का मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 4 मिनट से दोपहर 12 बजकर 53 मिनट तक रहेगा।

रामनवमी पर भगवान श्रीराम की ऐसे करें पूजा-अर्चना 

- सबसे पहले स्नान इत्यादि करके पवित्र होकर पूजास्थल पर पूजन सामग्री के साथ बैठें।

- पूजा में तुलसी पत्ता और कमल का फूल अवश्य होना चाहिए।

- सभी सामग्री के साथ श्रीराम नवमी की पूजा षोडशोपचार से करें।

- श्रीराम के सबसे प्रिय पदार्थ खीर और फल-मूल को प्रसाद के रूप में तैयार करें।

- पूजा के बाद घर की सबसे छोटी महिला अथवा लड़की को घर में सभी जनों के माथे पर तिलक लगाना चाहिए।

पूजा विधि

प्रात:काल उठकर नित्य कर्म कर, स्नान कर लें। स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा गृह को शुद्ध कर लें। सभी सामग्री एकत्रित कर आसन पर बैठ जाएं। चौकी अथवा लकड़ी के पटरे पर लाल वस्त्र बिछाएं। उस पर श्री राम जी की मूर्ति स्थापित करें। साथ में श्रीराम दरबार की तस्वीर सजाएं। श्रीराम जी का पूरा दरबार जिसमें चारों भाई के साथ हनुमान जी भी दिखाई दे।

राम नवमी की मान्यता

मान्यता के मुताबिक भगवान राम त्रेता युग में अवतरित हुए। उनके जन्म का एकमात्र उद्देश्य मानव मात्र का कल्याण करना, मानव समाज के लिये एक आदर्श पुरुष की मिसाल पेश करना और अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना था। यहां धर्म का अर्थ किसी विशेष धर्म के लिये नहीं बल्कि एक आदर्श कल्याणकारी समाज की स्थापना से है। राजा दशरथ जिनका प्रताप दशों दिशाओं में व्याप्त रहा। तीन-तीन विवाह उन्होंने किये थे लेकिन किसी भी रानी से उन्हें पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई। 

ऋषि मुनियों से जब इस बारे में विमर्श किया तो उन्होंने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने की सलाह दी। पुत्रेष्टि यज्ञ करवाने के पश्चात यज्ञ से जो खीर प्राप्त हुई उसे राजा दशरथ ने अपनी प्रिय पत्नी कौशल्या को दे दिया। कौशल्या ने उसमें से आधा हिस्सा केकैयी को दिया इसके पश्चात कौशल्या और केकैयी ने अपने हिस्से से आधा-आधा हिस्सा तीसरी पत्नी सुमित्रा को दे दिया। इसीलिये चैत्र शुक्ल नवमी को पुनर्वसु नक्षत्र एवं कर्क लग्न में माता कौशल्या की कोख से भगवान श्री राम जन्मे। केकैयी से भरत ने जन्म लिया तो सुमित्रा ने लक्ष्मण व शत्रुघ्न को जन्म दिया।  

भगवान श्री राम को मर्यादा का प्रतीक माना जाता है। उन्हें पुरुषोत्तम यानि श्रेष्ठ पुरुष की संज्ञा दी जाती है। वे स्त्री पुरुष में भेद नहीं करते। अनेक उदाहरण हैं जहां वे अपनी पत्नी सीता के प्रति समर्पित व उनका सम्मान करते नज़र आते हैं। वे समाज में व्याप्त ऊंच नीच को भी नहीं मानते। शबरी के झूठे बेर खाने का उदाहरण इसे समझने के लिये सर्वोत्तम है। े

वेद शास्त्रों के ज्ञाता और समस्त लोकों पर अपने पराक्रम का परचम लहराने वाले, विभिन्न कलाओं में निपुण लंकापति रावण के अंहकार के किले को ध्वस्त करने वाले पराक्रमी भगवान श्री राम का जन्मोत्सव देश भर में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री राम की भक्ति में डूबकर भजन कीर्तन किये जाते हैं। श्री रामकथा सुनी जाती है। रामचरित मानस का पाठ करवाया जाता है। श्री राम स्त्रोत का पाठ किया जाता है। कई जगहों भर भगवान श्री राम की प्रतिमा को झूले में भी झुलाया जाता है। रामनवमी को उपवास भी रखा जाता है। मान्यता है कि रामनवमी का उपवास रखने से सुख समृद्धि आती है और पाप नष्ट होते हैं।