May 28, 2022, 19:03 IST

मनुष्य द्वारा अपने को दूसरों से श्रेष्ठ सिद्ध करने की प्रवृत्ति ने पूजा (अर्चन-ध्यान) के स्वरूप को बदलना आरंभ कर दिया है

मनुष्य द्वारा अपने को दूसरों से श्रेष्ठ सिद्ध करने की प्रवृत्ति ने पूजा (अर्चन-ध्यान) के स्वरूप को बदलना आरंभ कर दिया है

पूजा, प्रार्थना, इबादत, प्रेयर, अरदास आदि वो प्रक्रियाएं हैं जिनके माध्यम से हम परमात्मा के प्रति अपनी कृतज्ञता व भावनाएं प्रकट करते हैं। प्रारंभ में प्रकृति में जो कुछ भी जीवंत है, वह पूजनीय था और आरंभ में इन्हीं को परमशक्ति मान कर इनकी आराधना की जाती थी जैसे कि सूर्य, चंद्रमा, वृक्ष, नदियां पृथ्वी,सागर,बादल, वर्षा इत्यादि। आरंभ में पूजा या आराधना अत्यंत साधारण व मनुष्य की परम के प्रति अपनी कृतज्ञता को प्रदर्शित करने का एक माध्यम थी। जल, पुष्प, अन्न इत्यादि के द्वारा मनुष्य अपना धन्यवाद परमात्मा के प्रति प्रकट करता था। पृथ्वी के अलग-अलग हिस्सों पर मानव के विकास के साथ ही क्षेत्र, भाषा की भिन्नता व आवश्यकताओं की विविधताओं के कारण धीरे-धीरे विभिन्न संप्रदायों का विकास भी होने लगा। आत्मज्ञान के अभाव में साधारण मनुष्य अराधना की वास्तविकता से अपरिचित था, अतः अधिक से अधिक  भौतिक वस्तुओं के अर्पण द्वारा अपनी पूजा को सफल बनाना चाहता था तथा अपने संप्रदाय को दूसरे से श्रेष्ठ सिद्ध करने की होड़ भी थी। पूजा धीरे-धीरे आडंबर युक्त व कट्टर होती गई। हम भौतिकता का प्रदर्शन करके यह भूल जाते हैं कि इन वस्तुओं के सृजनहार स्वयं वही परमात्मा है जिनकी आप आराधना कर रहे हैं। उन्हें उन वस्तुओं की कोई लालसा नहीं जो उन्हीं के द्वारा रची गई हैं। वे तो बस भाव के भूखे हैं। इसी सत्य को श्री माताजी ने अपनी अमृतवाणी में इस प्रकार वर्णित किया है कि,
 " पूजा एक बाह्य भेंट है, परन्तु पूजा का प्रसाद और आशीष फल किस प्रकार प्राप्त करना है, इसका ज्ञान आपको होना चाहिये | पूजा या प्रार्थना का उदय आपके हृदय से होता है | मन्त्र आपकी कुन्डलिनी के शब्द हैं | परन्तु यदि पूजा हृदय से नहीं की गई और मन्त्रोच्चारण के साथ यदि कुन्डलिनी का सम्बन्ध नहीं जुड़ा तो पूजा केवल कर्मकाण्ड बनकर रह जाती है...|"  (प. पू. श्री माताजी , चैतन्य लहरी, वर्ष 1991, पृ. 22 से साभार)
अनेक ग्रंथों में इस बात की भविष्यवाणी की गई है कि कलयुग में आत्मज्ञान को पाना अत्यंत सहज होगा और इन्हीं भविष्यवाणियों को सत्य सिद्ध करता है श्री माताजी निर्मला देवी जी का अवतरण व सहजयोग का संस्थापन। श्री माता जी के सानिध्य में आत्म साक्षात्कार को कुंडलिनी जागरण के द्वारा प्राप्त करने के पश्चात नियमित ध्यान धारणा द्वारा आप अत्यंत ही सहज तरीके से सत्य को प्राप्त कर आत्मा व परमात्मा के संबंध को समझ पाते हैं और तब आप की आराधना भौतिक ना होकर हृदय से प्रेरित होती है।
गहनता, कुंडलिनी जागरण द्वारा आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने हेतु सहजायोगा डॉट ओआरजी डॉट इन और टोल फ्री नम्बर  18002700800 पर सम्पर्क करें।