आजकल बहुत-से ओटीटी शोज़ और फिल्में रियलिस्टिक कंटेंट के नाम पर बोल्ड सीन की हदें पार कर देते हैं। इस पर अभिनेत्री स्वरूपा घोष, जो इन दिनों सोनी टीवी के शो आमी डाकिनी में नज़र आ रही हैं और हाल ही में जाट में दिखी थीं, कहती हैं कि हकीकत और मनोरंजन के बीच एक महीन रेखा होती है, जिसे कई बार ज़रूरत के बिना भी पार कर दिया जाता है।
स्वरूपा कहती हैं, “सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि हम बोल्डनेस को कैसे परिभाषित करते हैं। मेरे लिए बोल्डनेस का मतलब है वह सच्चाई कह देना जिसे समाज ने लंबे समय से दबा कर रखा है, और उस पर आगे बढ़ने की कोशिश करना। अफसोस की बात यह है कि फिल्मों या ओटीटी पर हमेशा ऐसा नहीं दिखाया जाता।”
वो आगे कहती हैं, “हर कला माध्यम समाज की बात करता है, और फिल्में या ओटीटी इससे अलग नहीं हैं। लेकिन मनोरंजन के नाम पर कई बार सच्चाई, हकीकत और मनोरंजन के बीच की सीमाएं धुंधली हो जाती हैं। ज़्यादातर बार ऐसा लगता है कि हम सच्चाई से ज़्यादा जनभावनाओं और मसालेदार प्रस्तुति के पीछे भागते हैं।”
आजकल कई शोज़ तलाक, पारिवारिक कलह जैसे मुद्दों पर खुलकर बात कर रहे हैं। इस पर स्वरूपा कहती हैं, “ये मुद्दे आज के नहीं हैं। पहले भी आविष्कार, दूरियां, इजाज़त, अर्थ जैसी फिल्मों में इन विषयों को गंभीरता से दिखाया गया है। कई क्षेत्रीय फिल्मों ने भी इन्हें उठाया है। बस अब समाज ज़्यादा स्वीकार करने लगा है। ये एक्सपोज़र नहीं, बल्कि सच्चाई को स्वीकार करने की बात है।”
युवाओं को लेकर वह कहती हैं, “मैं मानती हूं कि कंटेंट का इस्तेमाल सोच-समझकर और सीमित रूप में होना चाहिए, खासकर युवाओं के लिए। ज़रूरी है कि उन्हें समझाया जाए कि क्या ठीक है और क्या नहीं।”
खुद के बारे में बात करते हुए स्वरूपा कहती हैं, “जैसा मैंने पहले भी कहा, ये सब इस बात पर निर्भर करता है कि 'बोल्डनेस' की परिभाषा क्या है। क्या ये किसी विचार या किरदार की बात है, या सिर्फ उत्तेजक दिखावे की? मैं उस आखिरी किस्म की बोल्डनेस में बिलकुल भी रुचि नहीं रखती। शुक्र है कि मेरी उम्र में लोग मुझसे ऐसी उम्मीदें नहीं करते। जहां तक ऑनस्क्रीन इंटिमेसी की बात है, मुझे उसके सूक्ष्म, गहरे और परतदार पहलू ज़्यादा पसंद हैं, क्योंकि उसमें एक कलाकार के तौर पर ज़्यादा मेहनत और गहराई की ज़रूरत होती है।”

