Jan 16, 2022, 10:31 IST

Sakat Chauth 2022: सकट चतुर्थी का व्रत कब और क्यों किया जाता है, जानिए चंद्रदर्शन का समय, पूजा-विधि व महत्व

Sakat Chauth 2022: सकट चतुर्थी का व्रत कब और क्यों किया जाता है, जानिए चंद्रदर्शन का समय, पूजा-विधि व महत्व

सकट चौथ (Sakat Chauth) 2022 कब है:  माघ महीने के गणेश चतुर्थी को सकट, तिलवा और तिलकुटा चौथ का व्रत कहते है। इस बार सकट व्रत का पूजन 21 जनवरी यानि कि दिन शुक्रवार को होगा। ये व्रत महिलाएं संतान की लंबी आयु के लिए करती है। पहले ये व्रत पुत्र के लिए किया जाता रहा है, लेकिन अब बेटियों के लिए भी व्रत किया जाने लगा है।

सकट चौथ  का  शुभ मुहूर्त

सकट चौथ तिथि का आरंभ-  21जनवरी 2022, शुक्रवार सुबह 08:51 am
सकट चौथ तिथि का समापन - 22 जनवरी 2022, शनिवार, सुबह 09:14 am
चंद्र दर्शन का समय-रात को 9.25 मिनट पर

सकट चौथ पूजा विधि

माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को  सकट चौथ मनाया जाता है। इस दिन गणपति का पूजन किया जाता है। महिलााएं निर्जल रहकर व्रत रखती हैं। शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है। ये व्रत करने से दु:ख दूर होते हैं और मनोकामनाएं पूरी होती हैं।वक्रतुंडी चतुर्थी, माघी चौथ अथवा तिलकुटा चौथ भी इसी को कहते हैं। सूर्योदय से पूर्व स्नान के बाद उत्तर दिशा की ओर मुंह कर गणेश जी को नदी में 21 बार, तो घर में एक बार जल देना चाहिए। सकट चौथ संतान की लंबी आयु हेतु किया जाता है। चतुर्थी के दिन मूली नहीं खानी चाहिए, धन-हानि की आशंका होती है। देर शाम चंद्रोदय के समय व्रती को तिल, गुड़ आदि का अर्घ्य चंद्रमा, गणेश जी और चतुर्थी माता को अवश्य देना चाहिए। अर्घ्य देकर ही व्रत खोला जाता है। इस दिन स्त्रियां निर्जल व्रत करती हैं। सूर्यास्त से पहले गणेश संकष्टी चतुर्थी व्रत की कथा-पूजा होती है। इस दिन तिल का प्रसाद खाना चाहिए। दूर्वा, शमी, बेलपत्र और गुड़ में बने तिल के लड्डू चढ़ाने चाहिए।

सकट चतुर्थी व्रत का  महत्व

 12 मास में आने वाली चतुर्थी में माघ की चतुर्थी का सबसे अधिक महत्व है। पुराणों के अनुसार, गणेश ने इस दिन शिव- पार्वती की परिक्रमा की थी। परिक्रमा कर माता-पिता से श्रीगणेश ने प्रथम पूज्य का आशीर्वाद का पाया था।  इस दिन 108 बार ' ऊँँ गणपतये नम:' मंत्र का जाप करना चाहिए। तिल और गुड़ का लड्डू श्री गणेश को चढ़ाने से रुके काम बनते हैं।  इस दिन गणेश के साथ शिव और कार्तिकेय की भी पूजा कर कथा सुनी जाती है। सकट चतुर्थी का व्रत रखने और सच्चे ह्रदय से पूजा करने से संकटों से रक्षा होती है। महिलाओं द्वारा अपने संतान की रक्षा और सफलता के लिए सकट चतुर्थी का व्रत रखा जाता है। भगवान श्री गणेश को समर्पित सकट चौथ एक बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है। इस व्रत में भगवान श्री गणेश जी की मुख्य रूप से आराधना की जाती है। साथ ही इस व्रत में चौथ माता या सकट माता की भी आराधना की जाती है। भगवान श्री गणेश जी को बिघ्न हर्ता कहा जाता है। सकट चतुर्थी का व्रत करने और श्री गणेश जी की सच्चे ह्रदय से पूजा करने से सभी प्रकार के संकटों से गणेश जी रक्षा करतें हैं। इस व्रत में महिलाएं दिन भर निर्जला व्रत रखती हैं, और साम को गणेश जी की पूजा आराधना करने के पश्चात चंद्र दर्शन करके व्रत का समापन किया जाता है। सकट चौथ के व्रत में भगवान श्री गणेश जी को तिल के लड्डू के साथ अन्य पकवान का भोग लगाया जाता है। इस व्रत के प्रभाव से परिवार पर आने वाले सभी संकट कट जातें हैं और हर काम में सफलता अर्जित करते हैं।

सकट चतुर्थी व्रत की कथा

 एक पौराणिक कथा- सत्ययुग में महाराज हरिश्चंद्र के नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार उसने बर्तन बनाकर आंवा लगाया, पर आवां पका ही नहीं। बार-बार बर्तन कच्चे रह गए। बार-बार नुकसान होते देख उसने एक तांत्रिक से पूछा, तो उसने कहा कि बलि से ही तुम्हारा काम बनेगा। तब उसने तपस्वी ऋषि शर्मा की मृत्यु से बेसहारा हुए उनके पुत्र की सकट चौथ के दिन बलि दे दी।

उस लड़के की माता ने उस दिन गणेश पूजा की थी। बहुत तलाशने पर जब पुत्र नहीं मिला, तो मां ने भगवान गणेश से प्रार्थना की। सवेरे कुम्हार ने देखा कि वृद्धा का पुत्र तो जीवित था। डर कर कुम्हार ने राजा के सामने अपना पाप स्वीकार किया। राजा ने वृद्धा से इस चमत्कार का रहस्य पूछा, तो उसने गणेश पूजा के विषय में बताया। तब राजा ने सकट चौथ की महिमा को मानते हुए पूरे नगर में गणेश पूजा करने का आदेश दिया। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकट हारिणी माना जाता है।

एक और दूसरी कथा को अनुसार,  भगवान गणेश के ऊपर आया सबसे बड़ा संकट  इस चौथ के दिन टल गया था। इसलिए ही इसका नाम सकट चौथ पड़ा।  धर्मानुसार माँ पार्वती एक बार स्नान करने गयी और स्नान घर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश को खड़ा कर दिया। इसके बाद उन्होंने अपने पुत्र से कहा की जब तक में स्नान करके बाहर नहीं आ जाऊ, जब तक किसी को भी भीतर आने नहीं देना।

अपनी माँ के आदेश पर गणेश जी वहाँ पहरा देने लगे और उसी समय शिव भगवान, पार्वती जी से मिलने आये, लेकिन भगवान गणेश ने उन्हें वही खड़ा रहने के लिए कहा। इतना कहते ही भगवान शिव को बहुत ही आहत और अपमानित महसूस हुआ। क्रोध में आकर भगवान शिव ने गणेश जी पर त्रिशूल का वार किया, जिससे उनकी गर्दन दूर जा पड़ी।

स्नानघर से  जब माता पार्वती बाहर आयी तो उन्होने देखा की गणेश जी की गर्दन कटी पड़ी है। इतना देखते पड़ी और उन्होंने भगवान शिव से कहा की उन्हें गणेश फिर से वापस चाहिए। इस बात पर शिव जी ने एक हाथी का सिर लाकर गणेश जी को लगा दिया और फिर गणेश जी एक नया जीवन मिला। तभी से ही गणेश जी के हाथी की तरह सूंढ होने लगी। इसी दिन से महिलाये कृष्ण पक्ष की चौथ को अपने बच्चो की रक्षा, सुख शांति इत्यादि के लिए सकट चौथ का व्रत करने लगी।