Mahakal में मौजूद है रहस्यमयी दरवाजा, बिना बाबा की अनुमति के नहीं मिलता प्रवेश

 

Mahakal Mysterious Door: उज्जैन में स्थित महाकालेश्वर मंदिर विश्व भर में जाना जाता है। दुनिया भर से श्रद्धालु यहां विराजित एकमात्र दक्षिणमुखी शिवलिंग के दर्शन करने के लिए पहुंचते हैं। ये मंदिर अपने अंदर प्राचीन रहस्य और इतिहास को समेटे हुए हैं। आपको जानकर हैरानी होगी लेकिन महाकाल मंदिर में एक ऐसा रहस्य में दरवाजा है जिसके अंदर बिना बाबा महाकाल की आज्ञा लिए प्रवेश नहीं किया जा सकता। आज हम आपको इस दरवाजे से जुड़ी मान्यता के बारे में बताते हैं।

महाकाल मंदिर में मौजूद चांदी द्वार बहुत ही पुराना है जिसके बारे में सभी लोगों ने सुना है। महाकालेश्वर मंदिर के प्राचीन रहस्य और इतिहास वैसे भी श्रद्धालुओं को हमेशा अपनी और आकर्षित करते हैं। ऐसा ही एक रहस्य इस चांदी द्वार के साथ भी जुड़ा हुआ है। मंदिर के पंडित और पुरोहितों के अलावा किसी को भी इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है।

अनादिकाल से चांदी द्वार से पंडित, पुरोहित और दर्शनार्थी बाबा के दर्शन के लिए प्रवेश करते आ रहे हैं लेकिन इस द्वार में प्रवेश करना आसान बात नहीं है। शयन आरती के बाद जब बाबा को आराम करने के लिए सुला दिया जाता है उसके बाद इस द्वार को बंद कर दिया जाता है। उसके बाद जब सुबह पुनः इस दरवाजे को खोल ना होता है तो पहले बाबा महाकाल से अनुमति ली जाती है।

सुबह बाबा को जगाने के लिए पहुंचने वाले पंडित और पुरोहित महाकाल से द्वार खोलने की अनुमति लेते हैं। यह ठीक उसी तरह से होता है जिस तरह से किसी के घर पर जाने पर हम उन्हें दरवाजा खोलने के लिए वहां लगी हुई घंटी बजा कर संदेश देते हैं।

इसी तरह से द्वार के बाद लगे हुए घंटे को बचाकर महाकालेश्वर से द्वार खोलने की अनुमति ली जाती है। इसके बाद चांदी द्वार खोला जाता है और बाबा की भस्म आरती संपन्न होती है। जानकारी के मुताबिक बाबा महाकाल से अनुमति के बिना कोई भी चांदी द्वार खोलकर मंदिर में प्रवेश नहीं ले सकता।

महाकालेश्वर मंदिर में सुबह की भस्म आरती के साथ पूजन अर्चन का क्रम शुरू होता है। इसके बाद प्रातः कालीन आरती और भोग आरती संपन्न होती है। इसके पश्चात बाबा का शाम को विशेष श्रृंगार किया जाता है। संध्या आरती होने के बाद रात्रि में बाबा को शयन करवाने से पहले भी विशेष आरती की जाती है।

शयन आरती के पश्चात मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं और कोई भी यहां पर प्रवेश नहीं कर सकता है। सुबह भस्मारती से पूर्व चांदी द्वार के बाहर लगे घंटे को बजाकर इसकी अनुमति दी जाती है और उसके बाद पूजन अर्जुन का दौर शुरू होता है। रोजाना ये प्रक्रिया दोहराई जाती है।

चांदी द्वार की घंटी बजाने के बाद जब पंडित और पुरोहित मंदिर में प्रवेश करते हैं उसके पश्चात बाबा को कोटि तीर्थ के जल से स्नान कराया जाता है। महाकाल मंदिर परिसर में स्थित कोटि तीर्थ बहुत ही प्रसिद्ध है। इसमें सभी नदियों का जल सम्मिलित है इसलिए बाबा के स्नान में इसी जल का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद पंचामृत अभिषेक कर विशेष श्रृंगार होता है।