उदया तिथि के अनुसार, इंदिरा एकादशी व्रत 21 सितंबर,जानिए सबकुछ

 
ऐसा माना जाता है कि एकादशी व्रत रखने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा बनी रहती है। ऐसा भी माना जाता है कि इस दिन व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से पूजा का फल अतिशीघ्र प्राप्त हो जाता है।
इंदिरा एकादशी 2022 शुभ मुहूर्त- हिंदू पंचांग के अनुसार, आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि 20 सितंबर, मंगलवार को रात 09 बजकर 26 मिनट पर शुरू होगी। इस तिथि का समापन 21 सितंबर, बुधवार को रात 11 बजकर 34 मिनट पर होगा। उदया तिथि के अनुसार, इंदिरा एकादशी व्रत 21 सितंबर, बुधवार को रखा जाएगा।
इंदिरा एकादशी व्रत की कथा- सतयुग में इंद्रसेन नामक राजा महिष्मति नगर पर शासन करता था। वह भगवान विष्णु का भक्त था, उसके पास किसी चीज की कमी नहीं थी। एक दिन उसके राजदरबार में नारद मुनि पधारे। राजा ने उनका आदर सत्कार किया और आने का प्रयोजन पूछा। तब नारद जी ने कहा कि वे एक दिन यमलोक गए थे। उन्होंने यमराज से मुलाकात की। उनकी प्रशंसा की। उस दौरान उन्होंने तुम्हारे पिता को देखा। वे यम लोक में थे। नारद जी ने राजा इंद्रसेन को उसके पिता का संदेशा बताया। उसके पिता ने कहा था कि किसी कारणवश उनसे एकादशी व्रत में कोई विघ्न बाधा हो गई थी, जिसके फलस्वरूप उनको यम लोक में यमराज के पास समय व्यतीत करना पड़ रहा है। यदि तुम से संभव हो सके तो अपने पिता के लिए इंदिरा एकादशी व्रत करो। इससे वे यमलोक से मुक्त होकर स्वर्ग लोक में स्थान पा सकेंगे। तब राजा इद्रसेन ने नारद जी से इंदिरा एकादशी व्रत की विधि बताने को कहा।
नारद जी ने कहा कि इंदिरा एकादशी व्रत के दिन तुम स्नान आदि करके भगवान शालिग्राम के समक्ष अपने पितरों का श्राद्ध विधिपूर्वक करो। ब्राह्मणों को फलाहार और भोजन कराओ। फिर उनको दक्षिणा दो। इसके बाद बचे हुए भोजन को गाय को खिला दो। फिर धूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि से भगवान ऋषिकेष का पूजन करो। फिर रात्रि के समय में भगवत जागरण करो। अगले दिन सुबह स्नान आदि के बाद पूजन करों और ब्राह्मणों को भोजन कराओ। इसके बाद स्वयं भी भोजन करके व्रत को पूरा करो। नारद जी ने कहा कि हे राजन! तुम विधिपूर्वक इंदिरा एकादशी व्रत को करोगे तो निश्चय ही तुम्हारे पिता स्वर्ग लोक में स्थान प्राप्त करेंगे। इसके बाद नारद जी वहां से चले गए। जब आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी आई तो राजा इंद्रसेन ने विधिपूर्वक इंदिरा एकादशी व्रत किया। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से उसके पिता यमलोक से मुक्त होकर विष्णु लोक को चले गए। मृत्यु के बाद राजा इंद्रसेन को भी स्वर्ग लोक की प्राप्ति हुई।